Saturday, 30 April 2011

इंसानियत या तरक्की ??

बैठ किनारे दरिया के,
मानस मन मेरा सोच रहा,
दुनिया भर का येही विचार,
मन को मेरे कोंच रहा,

रंग दरिया,क्यूँ मटमैला?
गगन के जैसा क्यूँ नील नहीं?
जैसी देखीं,ख्वाबो में,
वैसी अब क्यूँ कोई झील नहीं?

हवाए बहती थीं,अब भी बहती हैं,
पर अब हवाओं में,ज़हर है क्यूँ फ़ैल रहा?
प्राचीन काल के वो वैभव,
अब न जाने गए कहां?

पहले जब इंसानियत थी,
था,मानस मन तरक्की को  ढूँढ रहा,
पंहुचा जब तरक्की की चोटी पर,
मानस मन इंसानियत को ढूँढ रहा,


अब सोचता हूँ,है बेहतर क्या....


इंसानियत     या   तरक्की  ??

जरा सोचो वाकई क्या,तुम वीर हो????

शाख से टूटा है पल्लव,
ना जाने कहाँ गिरेगा,
जब तलक था शाख पे,
वो सबकी नज़र में था,
पल्लवों के कारवां में,
थी अपनी दुनिया उसकी,
शाख की थीं तमाम ख़बरें,
वो भी तो हर खबर में था.

टूटने के बाद उसके,
नए पल्लव आ गए,
ये नए पल्लवे क्या जाने?
पूर्वज उनके कहाँ गए?
उन्हें भी जीना पड़ेगा!!!

मौसमों ने रंग बदले,
करवटें ली शाख ने,
जो मजा सावन में था,
वो कहाँ बैशाख में!

पतझड़ की बात न पूछो,
पल्लव सारे बिखर गए,
कुछ गए फिजाओं में,और,
कुछ नालियों में सड़ गए!!

हो नहीं पल्लव तो फिर भी,
नाज़ खुद पे न करो,
आएगा तुमपे भी पतझड़,
थोडा बहुत तो खुदा से डरो?

तुम जहाँ रहते हो यारों,
वो भी तो एक शाख है,
और भी तमाम पल्लव,
तो तुम्हारे साथ हैं,

पल्लवों को बिखेरती है,
आके पतझड़ हर बरस,
पतझड़ में देख शाख को,
तुम्हें आती नहीं क्यूँ तरस,

क्यूँ बरपाते हो पतझड़,
खुद-ब-खुद तुम शाख पे,
क्या मिलेगा तुमको यारों
एक दूजे को मार के!

क्यूँ उठा लिए हैं तुमने,
खुद जनाजे प्यार के,
अपने गमलो में ही फकत,
क्यूँ बहते नीर हो,
इतने स्वार्थी मत बनो,

जरा सोचो वाकई क्या,तुम वीर हो????


मैं तुम्हे अपना बनाना चाहता हूँ,

तुमको तुमसे ही चुराना चाहता हूँ,
मैं तुम्हे अपना बनाना चाहता हूँ,

गुल भी है,गुलशन भी है,इस जहाँ में,
महफ़िलें,दावत भी हैं,इस   जहां में,
लोगों का एक दुसरे से, हक भी
अदा है,     इस  जहां में,

मैं तुम्हें हर एक शै, में पाना चाहता हूँ,
मैं तुम्हें अपना.........

तुम कहाँ हो,तुम जहाँ हो,
ये सुना सबसे है मैंने,
तुम यहीं हो,तुम नहीं हो,
ये कहा सबसे है मैंने,

मैं तुम्हे हर जनम में ,पाना चाहता हूँ,
मैं तुम्हे अपना बनाना चाहता हूँ.

Sunday, 17 April 2011

ज़िन्दगी के सफ़र में,आया ये कैसा मंज़र,

ज़िन्दगी के सफ़र में,आया ये कैसा मंज़र,
छोटे से इस जहां में,जीवन हुआ समंदर,

दिल की हालत मेरे, पहले तो ऐसी नहीं थी,
हाँ,मेरे दिल में शायद,तुम भी पहले नहीं थी,
तेरी ज़रुरत मुझको,क्यूँ इतना तडपा रही है,
दिल से हु आने बेबस,तेरी याद आ रही है....

दिन ये छोटे नहीं हैं,हैं कितनी लम्बी रातें;
आती हैं याद मुझको,तुम्हारी ही  सारी बातें,
ख्वाबों में आके अब तुम,मुझको न तडपाओ,
इस से पहले की मौत आये,तुम गले लग जाओ......

चाँद भी चलते-चलते,बादल में रुक जाता है,
दूर क्षितिज को देखो,बादल -धरती से मिल जाता है,
बिना तुम्हारे ये जीवन, अब लगता है बोझल,
ख्वाबो में तुमको देखूं ,पर नींद हो गयी ओझल...

ज़िन्दगी के सफ़र........

oct-1994 

न जाने मिलेगी मौत कहाँ? किस दुकान पर .........

मिलने को मिल गयी  ज़िन्दगी,एक ठहरे मुकाम पर,
न जाने मिलेगी मौत कहाँ? किस दुकान  पर.........

सुख , दुःख का संगम है,कहते हैं नीमत जिसे,
पाता नहीं समझ जियूँ ,  किस  कीमत  इसे,
हर एक शाख ज़िन्दगी की,दब गयी है ग़मों से,
आये न नाम मौत का,क्यूँ मेरे लबों  पर,,

मिलने को........

पायें है कितने ज़ख्म,सुनाऊँ किसे  यहाँ,
साया भी बेवफा है,बुलाऊँ किसे यहाँ,
एक mai he to है,sahara mera yahaan,
आये न koi और अब मेरी पुकार पर,

मिलने को ....

कहते हैं तजुर्बेकार गम को,हंस -हंस के पियेजा,
ज़िन्दगी,जिंदादिली का नाम है,बेखौफ्फ़ तू जियेजा,
पर जल गया है जो,जीवन की आग से,
मर-मर के जी रहा हो,और जियेगा क्या....
आता है रश्क mujhe,उनकी ज़बान पर .....

मिलने को मिल गयी  ज़िन्दगी,एक ठहरे मुकाम पर,
न जाने मिलेगी मौत कहाँ? किस दुकान  पर.........






Monday, 11 April 2011

कोई रास्ता न था........

हम तो मजबूर हुए थे,
कुछ इस तरह से,
औरों की मजबूरियों से,
कोई वास्ता न था...

चल पड़े जिस राह पे,
ये कदम मेरे,
इसके सिवा अपना,
कोई रास्ता न था....

कदम मेरे कहाँ,
जा रहे हैं,
ये इल्म न था..
तनहा इस डगर में,
किसीको हमसे,
कोई वास्ता न था....

बेचैन थे,बहुत
दिल का करार ढूढ़ रहे थे,
जा के मिलता जो,
मंजिल से,कोई रास्ता न था........

जो कल थे वो ही आज भी हैं.....

ये दिन मेरे,ये रातें मेरी,
ये शिकवे मेरे,ये बातें मेरी,
जो कल थी,वो ही आज भी हैं,

ये मेरे दिल की आंहे,
ये मेरी आँखों के आंसू,
ग़मों के हर दौर से,गुजरकर भी,
मुस्कराते आंसूं..........
जो कल थे वो ही आज भी हैं...

ये सूनापन मेरे जीवन का,
ये अनजान ज़िन्दगी...
हर मुर्दपरस्तों पे,
कुर्बान ज़िन्दगी...
साँसों के कारवां में,
बेजान ज़िन्दगी...
जो कल थी,वो ही आज भी है...

किसी मंजिल को,
तलाश रही मेरी आँखें,
पर हर किसी से,
अनजान मेरी आँखें,
इन आँखों में बसे,
मेरे हर सपने......
जो कल थे वो ही आज भी हैं.....

१०/०४/१९९६

Sunday, 10 April 2011

हाँ, कुछ लहरों ने मुस्करा दिया... !!

उठती,थमती,चीखती,बलखाती,
थकतीं,पुनः जोश भरती,लहरों से
रोक के पुछा सागर ने .......
कहाँ -...कहाँ जा रही हो???


एक दूजे को देखती,
आँखे चुराती,जल्दबाजी में
कहा लहरों ने सागर से..
मिलने-...मिलने किनोरों से!!!!

सागर चौंका,सोचा-हंसा,
आश्चर्य,शंकित,थोडा संभलकर,
फिर से पुछा......
निरंतर मिलती रहती हो??

आँहे भरकर,रो कर,बेचैनी से,
कहा कुछ लहरों ने,
हमारे इतने भाग कहाँ,
हाँ, कुछ लहरों ने मुस्करा दिया... !!


11/4/2011



तब और अब

तुम थीं- मैं था,शायद हम थे,
मिलन के दिन भी,कितने कम थे,
तुम हो -मैं हूँ,नहीं अब हम हैं,
बस दोनों की आँखें नम हैं.

तुम थीं, जीवन-जीने का मकसद,
तुम थीं,मेरे जीवन का सरहद,
तुम थीं,जागी आँखों का सपना,
तुम थी,मेरा कोई अपना,

तुम हो, अब एक अधूरा सपना,
तुम हो,दूर मेरा कोई अपना,
तुम हो,गंगा जल की छुवन,
तुम हो,मेरा सूना सूना मन,

कैसे बुलाऊं,कैसे आओगी,
चाह के भी न आ पाओगी,
इस पार चलो,अब बनें किनारे
उस पार बनें एक सागर हम,

तुम थीं-मैं था,शायद......


सवाल

है  ये कैसा  जंगल,  ऐ खुदा,
यहाँ जानवर  कपडे पहनकर रहते हैं,
हर कहीं नंगे इन्सान इन जानवरों से डरते है?
तब भी कुछ जानवरों ने इंसानों को पाल रखा  है,
जरा बूझो ये पहेली,आज मैंने ये सवाल रखा है?????

१०/०६/१९९३


तू किसे ढूढता है

तू किसे ढूढता है,
यहाँ कौन तेरा है,
गम में हैं भीगी रातें
आंसुओं में सवेरा है,


सब हैं मतलब के यार
तेरे सुख के बीमार
तू जो दुःख में हो डूबा
सब तरफ अँधेरा है,

तू किसे ढूढता है,...

तू जो खुश हो अगर,
सब तेरे साथ चलें,
गम की बदली हो छाई,
तन्हाईयाँ बस तुझे मिलें,

मतलबी लोगों का जग में,
तेरे संग बसेरा है.............

तू किसे ढूद्ता है,
यहाँ कौन तेरा है.....

०४/०२/१९९३

जय माँ सरस्वती

ऐसा दे वरदान , तू मैया
जग में कुछ , मैं कर जाऊं,
कर सकूँ उद्धार सभी का,
खुद को अमर मैं कर  जाऊं,

हाथ तेरे हैं, पावँ तेरे हैं,
शहर तेरे हैं,गाँव तेरे हैं,
नर तेरे,नारी भी हैं तेरी,
सत्मार्ग सभी को दिखलाऊं,
ऐसा दे वरदान .........

होंठ तेरे,जिव्हा भी है तेरी,
मृग तेरा ,तृष्णा भी है तेरी,
मन तेरा काया भी है तेरी,
अर्थ सभी को मैं बतलाऊं
ऐसा दे वरदान तू मैया......