Sunday 17 April 2011

ज़िन्दगी के सफ़र में,आया ये कैसा मंज़र,

ज़िन्दगी के सफ़र में,आया ये कैसा मंज़र,
छोटे से इस जहां में,जीवन हुआ समंदर,

दिल की हालत मेरे, पहले तो ऐसी नहीं थी,
हाँ,मेरे दिल में शायद,तुम भी पहले नहीं थी,
तेरी ज़रुरत मुझको,क्यूँ इतना तडपा रही है,
दिल से हु आने बेबस,तेरी याद आ रही है....

दिन ये छोटे नहीं हैं,हैं कितनी लम्बी रातें;
आती हैं याद मुझको,तुम्हारी ही  सारी बातें,
ख्वाबों में आके अब तुम,मुझको न तडपाओ,
इस से पहले की मौत आये,तुम गले लग जाओ......

चाँद भी चलते-चलते,बादल में रुक जाता है,
दूर क्षितिज को देखो,बादल -धरती से मिल जाता है,
बिना तुम्हारे ये जीवन, अब लगता है बोझल,
ख्वाबो में तुमको देखूं ,पर नींद हो गयी ओझल...

ज़िन्दगी के सफ़र........

oct-1994 

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