ये दिन मेरे,ये रातें मेरी,
ये शिकवे मेरे,ये बातें मेरी,
जो कल थी,वो ही आज भी हैं,
ये मेरे दिल की आंहे,
ये मेरी आँखों के आंसू,
ग़मों के हर दौर से,गुजरकर भी,
मुस्कराते आंसूं..........
जो कल थे वो ही आज भी हैं...
ये सूनापन मेरे जीवन का,
ये अनजान ज़िन्दगी...
हर मुर्दपरस्तों पे,
कुर्बान ज़िन्दगी...
साँसों के कारवां में,
बेजान ज़िन्दगी...
जो कल थी,वो ही आज भी है...
किसी मंजिल को,
तलाश रही मेरी आँखें,
पर हर किसी से,
अनजान मेरी आँखें,
इन आँखों में बसे,
मेरे हर सपने......
जो कल थे वो ही आज भी हैं.....
१०/०४/१९९६
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