मिलने को मिल गयी ज़िन्दगी,एक ठहरे मुकाम पर,
न जाने मिलेगी मौत कहाँ? किस दुकान पर.........
सुख , दुःख का संगम है,कहते हैं नीमत जिसे,
पाता नहीं समझ जियूँ , किस कीमत इसे,
हर एक शाख ज़िन्दगी की,दब गयी है ग़मों से,
आये न नाम मौत का,क्यूँ मेरे लबों पर,,
मिलने को........
पायें है कितने ज़ख्म,सुनाऊँ किसे यहाँ,
साया भी बेवफा है,बुलाऊँ किसे यहाँ,
एक mai he to है,sahara mera yahaan,
आये न koi और अब मेरी पुकार पर,
मिलने को ....
कहते हैं तजुर्बेकार गम को,हंस -हंस के पियेजा,
ज़िन्दगी,जिंदादिली का नाम है,बेखौफ्फ़ तू जियेजा,
पर जल गया है जो,जीवन की आग से,
मर-मर के जी रहा हो,और जियेगा क्या....
आता है रश्क mujhe,उनकी ज़बान पर .....
मिलने को मिल गयी ज़िन्दगी,एक ठहरे मुकाम पर,
न जाने मिलेगी मौत कहाँ? किस दुकान पर.........