Tuesday 17 May 2011

अभिव्यक्ति

है अभिव्यक्ति, प्रतिव्यक्ति, ये विरक्ति,
अश्रु लिए नैनों  में सह ये क्षति,
मृगनैनी है, मृगतृष्णा....हो संकुचित!!
ना मन, तू रुक जा,तू रुक जा किसी से प्रेम ना कर....

माला!! जो थी वरमाला,
अब है अश्रुमाला,हाँ अश्रुमाला,
सारे सपने, बिखरे बन मोती कण,
ना मन, तू रुक जा,तू रुक जा किसी से प्रेम ना कर....

जीवन बना घनघोर तिमिर,
मन एकांकी एक समर...
कैसे युद्ध  करे किस से,
ना मन, तू रुक जा,तू रुक जा किसी से प्रेम ना कर....

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