Sunday 8 May 2011

कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं...

बैठे-बैठे बस सोचूं तुम्हें,
कुछ और नहीं कर पाऊं,
क्या करूँ,कितना सोचूं,
कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं...

सुबह से लेकर शाम तलक,
धरती से आकाश तलक,
आगाज़ से अंजाम तलक,
यहाँ से लेकर-वहां तलक,
वहां से लेकर- यहाँ तलक,
कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं...

बस चेहरा तेरा मेरे मन में बसा,
बस रूप तेरा मेरे मन में बसा,
बस याद तेरी जेहन में बसी,
बस बातें तेरी यादो में बसी,
सोचू कुछ इनके आगे ......पर
कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं...


आँखे तो बस रोना जाने,
तेरे दिल का होना जाने,
वो  क्या जानें,ये क्या जाने,
जाने तो बस इतना जाने.....
कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं,कुछ बस में नहीं...
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