Sunday 10 April 2011

तब और अब

तुम थीं- मैं था,शायद हम थे,
मिलन के दिन भी,कितने कम थे,
तुम हो -मैं हूँ,नहीं अब हम हैं,
बस दोनों की आँखें नम हैं.

तुम थीं, जीवन-जीने का मकसद,
तुम थीं,मेरे जीवन का सरहद,
तुम थीं,जागी आँखों का सपना,
तुम थी,मेरा कोई अपना,

तुम हो, अब एक अधूरा सपना,
तुम हो,दूर मेरा कोई अपना,
तुम हो,गंगा जल की छुवन,
तुम हो,मेरा सूना सूना मन,

कैसे बुलाऊं,कैसे आओगी,
चाह के भी न आ पाओगी,
इस पार चलो,अब बनें किनारे
उस पार बनें एक सागर हम,

तुम थीं-मैं था,शायद......


1 comment:

  1. किनारे साथ चलते हैं सामानांतर हमेशा
    समेटे हुए कितना पानी अपने अन्दर ...
    लहरें सोचती हैं की हम साथ हैं
    पर वो भागती रहती हैं हमेशा
    साथ नहीं रह पाती एक दूसरे के...

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