Sunday 17 April 2011

न जाने मिलेगी मौत कहाँ? किस दुकान पर .........

मिलने को मिल गयी  ज़िन्दगी,एक ठहरे मुकाम पर,
न जाने मिलेगी मौत कहाँ? किस दुकान  पर.........

सुख , दुःख का संगम है,कहते हैं नीमत जिसे,
पाता नहीं समझ जियूँ ,  किस  कीमत  इसे,
हर एक शाख ज़िन्दगी की,दब गयी है ग़मों से,
आये न नाम मौत का,क्यूँ मेरे लबों  पर,,

मिलने को........

पायें है कितने ज़ख्म,सुनाऊँ किसे  यहाँ,
साया भी बेवफा है,बुलाऊँ किसे यहाँ,
एक mai he to है,sahara mera yahaan,
आये न koi और अब मेरी पुकार पर,

मिलने को ....

कहते हैं तजुर्बेकार गम को,हंस -हंस के पियेजा,
ज़िन्दगी,जिंदादिली का नाम है,बेखौफ्फ़ तू जियेजा,
पर जल गया है जो,जीवन की आग से,
मर-मर के जी रहा हो,और जियेगा क्या....
आता है रश्क mujhe,उनकी ज़बान पर .....

मिलने को मिल गयी  ज़िन्दगी,एक ठहरे मुकाम पर,
न जाने मिलेगी मौत कहाँ? किस दुकान  पर.........






1 comment:

  1. वक़्त घुमा देता है ठहरे मुकाम को !
    कहती हैं जो ज़िन्दगी जिन्दादिली का नाम है....
    याद रखोगे तुम उसी ज़ुबान को !
    ढूंढ लायेगे हम ज़िन्दगी जहाँ मिले ...
    अगर बिकती है तो भी उसकी दुकान को !!
    परों में दम तो है बहुत ...
    थोड़ी हवा चाहिए ऊंची उडान को !!!

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